शब्दों के चक्रव्यूह को समझना एक कवि के लिए कुछ इस तरह से जरूरी है
की हर कविता कुछ वादों, इरादों और शब्दों के सुर ताल के मिश्रण के बिना अधूरी है
आयें है महान कवि हमारे भारत देश में कई , और आयेंगे आगे भी अभी
मगर एक महान कवि बनने के लिए जो नाम कमा गए उनके पद चिन्हों पर चलना बेहद जरूरी है
कविता चाहे वीर रस हो या श्रृंगार रस, या फिर प्रेम रस
बस हर रस के लिए शब्द रस को समझना जरूरी है
की हर कविता कुछ वादों, इरादों और शब्दों के सुर ताल के मिश्रण के बिना अधूरी है
आयें है महान कवि हमारे भारत देश में कई , और आयेंगे आगे भी अभी
मगर एक महान कवि बनने के लिए जो नाम कमा गए उनके पद चिन्हों पर चलना बेहद जरूरी है
कविता चाहे वीर रस हो या श्रृंगार रस, या फिर प्रेम रस
बस हर रस के लिए शब्द रस को समझना जरूरी है
है ये मेरी रचना आपसे कुछ विचार्रों के आदान प्रदान के लिए
जो की आपके शब्दों के आगमन के बिना अधूरी है
ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो ...
ReplyDeleteऑफिस में खुश रहो, घर में खुश रहो ...
आज पनीर नहीं है , दाल में ही खुश रहो ...
आज जिम जाने का समय नहीं , दो कदम चल के ही खुश रहो ...
आज दोस्तों का साथ नहीं, टीवी देख के ही खुश रहो ...
घर जा नहीं सकते तो फ़ोन कर के ही खुश रहो ...
आज कोई नाराज़ है, उसके इस अंदाज़ में भी खुश रहो ...
जिसे देख नहीं सकते उसकी आवाज़ में ही खुश रहो ...
एक लड़की छोड़ कर गयी तो दूसरी के इंतज़ार में खुश रहो
जिसे पा नहीं सकते उसकी याद में ही खुश रहो
Hey Nitesh,it's a really Nice poem and a real truth of life. I really liked it, thanks for sharing your amazing poem. I would to like to read your more poems, keep writing:)
ReplyDeleteक्या कहा धीरे से तुमने, मैं भी तो सुन लूं जरा
ReplyDeleteघुन्घुरुओं के स्वर बंधे, या तुलिका ने रंग भरा
यूँ लगे क्रंदन कोई नवजात शिशु करने लगा
या सृजित स्वरबद्ध होता राग कोई फिर नया
या दिवा प्रकाश से आलोकित ये जग हुआ
या हरीतिमा की ओद चादर दुल्हन बनी है ये धरा
यूँ लगे ज्यों कोकिला का कूकना इस कूल पर
नंदित भ्रमर का झूमना, इस फूल पर उस फूल पर
तितलियों की छद्म क्रीडा अहसास देती हे मुझे
शायद कहीं निर्जन धरा पर कोई नव बसंत पला
कल कल निनाद करती ज्यों सरिता,या मयंक बदलता कला
चंचला चपला हो चमकी, या तपित कुंदन खरा
तेरी वाणी की सजलता बांधती कुछ यूँ मुझे
रिक्त पियूष पात्र में, ज्यों मधुरस हो भरा.
Hey ashish,
ReplyDeleteGreat poem. the words you chose I really like in this poem. Keep writing.....:)
बसन्त
ReplyDeleteजब जब मानसरोवर में हंस टोलियाँ तिरती हैं
जब चंचल नीर लहर कोई तट पाने हेतु मचलती है
जब तुहिन बिंदु रवि किरणों से हीरे की तरह चमकते हैं
जब शशि की आभा कभी कभी पूनम की तरह दमकती है
जब मलय समीर चन्दन सुगंध निज साथ बहा ले आती है
और कहीं स्वछन्द शुन्य में खग कुल कलरव करती हैं
जब जब ललित मनभावन बूंदें रिमझिम का राग सुनती हैं
जब आवारा मेघों की टुकड़ी सावन की घटा बुलाती है
तब तब लगता इस अखिल विश्व ने
दुल्हन सा रूप सजाया हे
शाख, कोपलों पर पल बढकर
माह बसंती आया है
Wow, very nice poem :)
ReplyDeleteLOVED IT
ReplyDeleteIts the best