विचार्रों का आदान प्रदान

शब्दों के चक्रव्यूह को समझना एक कवि के लिए कुछ इस तरह से जरूरी है, की हर कविता कुछ वादों, इरादों और शब्दों के सुर ताल के मिश्रण के बिना अधूरी है

आयें है महान कवि हमारे भारत देश में कई , और आयेंगे आगे भी अभी,मगर एक महान कवि बनने के लिए जो नाम कमा गए उनके पद चिन्हों पर चलना बेहद जरूरी है

कविता चाहे वीर रस हो या श्रृंगार रस, या फिर प्रेम रस, बस हर रस के लिए शब्द रस को समझना जरूरी है

है ये मेरी रचना आपसे कुछ विचार्रों के आदान प्रदान के लिए, जो की आपके शब्दों के आगमन के बिना अधूरी है

Saturday, April 2, 2011

क्या होगा हमारी हिंदी भाषा का भविष्य?

हर शब्द, हर भाषा अपने आप में ही एक सुर ताल पिरो देती है. आपके, मेरे और हर हिंदी भाषा के प्रेमी के दिल में ये सवाल उठना सही है की क्या होगा हमारी हिंदी भाषा का भविष्य?
मैं  ये नहीं सोचती की हमारी संस्कृति से हिंदी का कोई बंधन है, क्यूंकि हमारा भारत देश स्वतः ही कही संस्कृतियों से जुडी भाषा के रंगों में रंगा है, या फिर हर भारतीय से हिंदी का कोई जुडाव है, क्यूंकि हमारे देशवासी उन अलग - अलग रंगों में रंगे हैं, मैं तो बस ये सोचती हूँ की हिंदी हमारे देश की एकता की एक अटूट डोर है.
जिस तरह हर एक देश किसी ना किसी भाषा को अपनाये हुए है, क्यों नहीं हम भी हमारे भिन्न - भिन्न  प्रकार के भाषाई रंगों में हिंदी को नहीं रंग सकते. क्यूँ भारत का हर एक नागरिक गर्व से ये नहीं कह सकता की वो हिंदी भाषा का ज्ञाता है? क्यूँ नहीं एक बच्चा अपना भविष्य हिंदी में नहीं ढूँढ सकता? क्यूँ नहीं माता -पिता उसे अंग्रेजी भाषा के साथ  - साथ हिंदी का भी उपयोग नहीं सिखाना चाहते? क्या हमारी हिंदी भाषा का भविष्य सच में खतरे मैं हैं?
मैं  ये नहीं कहती की समय के अनुसार अपने  तौर तरीकों को बदलना गलत हैं, मगर स्वयं की पहचान को बदल लेना भी क्या सही हैं? पाश्चात्य संस्कृति से कुछ सीखना उससे कुछ अपनाना जरूरी हैं, परन्तु  उसके लिए स्वयं की भाषा से दूर हो जाना भी तो सही नहीं. आज हम इतना ज्यादा हिंदी से दूर हो चुके हैं की उसे बोलना अपना अपमान और उसके ज्ञान को पाने से दूर भागते हैं. आज हिंदी भाषा कुछ कविताओं, किताबो या कुछ  ही हिंदी भाषा के प्रेमियों की जुबान पर रह गयी हैं.
मैं  आप सब से जानना चाहती हूँ की क्या होगा हमारी हिंदी भाषा का भविष्य? क्या हम यूँ ही सच से दूर भागते रहेंगे या फिर कभी वो अटूट एकता रूपी हिंदी भाषा की डोर को भारत देश में जोड़ पाएंगे ?

शब्दों को तू अपनी स्वर्णीय काया से रंगती है
रंगों  को भी तू  अपने रंगों में रंग लेती हैं
भक्ति को तू अपनी काया में समां लेती है
कभी तू  काव्यांजलि तो कभी गीतांजलि बन हर क्षण योवन बदलती है
दिन  प्रतिदिन चाह ही तेरी मेरे जीवन में ज्ञान बन घुलती है
वेदों, पुराणों  के अर्थ तू अपनी कला से समझा देती है
इतनी  श्रेष्ठ तो मेरे भारत देश की हिंदी भाषा ही हो सकती है

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