विचार्रों का आदान प्रदान

शब्दों के चक्रव्यूह को समझना एक कवि के लिए कुछ इस तरह से जरूरी है, की हर कविता कुछ वादों, इरादों और शब्दों के सुर ताल के मिश्रण के बिना अधूरी है

आयें है महान कवि हमारे भारत देश में कई , और आयेंगे आगे भी अभी,मगर एक महान कवि बनने के लिए जो नाम कमा गए उनके पद चिन्हों पर चलना बेहद जरूरी है

कविता चाहे वीर रस हो या श्रृंगार रस, या फिर प्रेम रस, बस हर रस के लिए शब्द रस को समझना जरूरी है

है ये मेरी रचना आपसे कुछ विचार्रों के आदान प्रदान के लिए, जो की आपके शब्दों के आगमन के बिना अधूरी है

Saturday, April 2, 2011

Dedication to Harivansh Rai Bachchan ji

आज मैंने हरिवंश राय  बच्चन जी की कुछ कवितायेँ पढ़ी, और उन्हें पढ़ के मुझे लगा की इनकी कविताओ और शब्दों से काफी सिखने को मुझे मिला है, और मैं या कोई भी कवी इन शब्दों और विचारों से अपनी कविताओं को लिखने की प्रेरणा पा सकता है. वैसे तो आपने इनकी कविताओं को काफी पढ़ा होगा, मगर मैंने अपने कुछ विचार यहाँ पर व्यक्त किये है जो शायद आपके विचारों से मिलते जुलते हो.

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हो घने, हो बड़े,
एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी!
कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत् रक्त से,
लथ पथ, लथ पथ, लथ पथ !
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

ये कविता मनुष्य के जीवन के संघर्ष का अर्थ बहुत ही स्पष्ट शब्दों  से समझा रही है.हर मनुष्य को एक अग्नि पथ पर चलना ही होता है, मगर उस मार्ग पर चलने के लिए उसे काफी हिम्मत और साहस की जरूरत हैं. मुझे उनकी इस कविता की ये पंक्तिय काफी पसंद आई :

ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत् रक्त से,
लथ पथ, लथ पथ, लथ पथ !

इन  पंक्तियों मैं जैसे इन्होने मेरे अनुसार बताया है की दुनिया एक महान द्रश्य है, जिसमे मनुष्य को चलना है और उसे चलने के लिए काफी हिम्मत और साहस की जरूरत है. उनकी हर कविता में भिन्न - भिन्न रस  की तरंगे बहती हैं, उन्ही में से ये एक कविता मैं काफी पसंद करती हूँ. इन्ही पंक्तियों से कुछ मिलती जुलती सी रचना मैंने लिखी है, जिसकी कुछ पंक्तियाँ मैं यहाँ लिखना चाहती हूँ:

तुम नर हो , नर मानव् बनो
अपने सपनों के कारक बनो
कर्तव्यों को तुम ठान लो
सपनों के के तुम धारक बनो ...


References:
Harivansh Rai "Bachchan" Shrivastav (November 27, 1907– January 18, 2003) was a distinguished Hindi Poet of Chhayaavaa literary movement (romantic upsurge) of early 20th century Hindi Literature. He is best known for his early work  मधुशाला. He is also the father of  Bollywood  megastar, Amitabh Bachachan.


http://en.wikipedia.org/wiki

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