विचार्रों का आदान प्रदान

शब्दों के चक्रव्यूह को समझना एक कवि के लिए कुछ इस तरह से जरूरी है, की हर कविता कुछ वादों, इरादों और शब्दों के सुर ताल के मिश्रण के बिना अधूरी है

आयें है महान कवि हमारे भारत देश में कई , और आयेंगे आगे भी अभी,मगर एक महान कवि बनने के लिए जो नाम कमा गए उनके पद चिन्हों पर चलना बेहद जरूरी है

कविता चाहे वीर रस हो या श्रृंगार रस, या फिर प्रेम रस, बस हर रस के लिए शब्द रस को समझना जरूरी है

है ये मेरी रचना आपसे कुछ विचार्रों के आदान प्रदान के लिए, जो की आपके शब्दों के आगमन के बिना अधूरी है

Wednesday, August 17, 2011

राजनीती



राजनीती एक दरिया है

वादों का, विचारों का, कभी सवालों का तो कभी जवाबों का
लोकतान्त्रिक भारत देश है ये
जवानों का , धर्मों का, कभी शहीदों का तो कभी सत्ता चला रही इस आवाम का
आवाम, आवाम परिभाषा है अधिकारों की, स्वतंत्रता में डूबे कुछ आम विचारों की
आवाम शक्ति है सचाई की, एक ही लय से जुड़े इरादों की
मगर परिभाषाओं का क्या, वो तो खुद ही सता के दरिया में घुल कर अपना अस्तित्व खो जाती है
सच कहूँ, सच के भेष में आकर वो ही परिभाषाएं झूठ का तांडव दिखाती है
तांडव होता है वो झूठे वादों का, कभी झुठे इरादों का तो कभी झूठे सहारों का
भारत की जनता सदियों से इस झूठ के काल से जूझ रही है
कहते हैं इस देश को चलाएंगे, तुम्हें रोटी क्या कपडा और मकान भी दिलाएंगे
तुम हमे समर्थन दो, हम अपने वादों को पूरा कर दिखायेंगे
आजादी के इतने सालों बाद भी इन वादों में दम है
क्योंकि हमारी आवाम आज भी कपड़ा और मकान क्या रोटी से भी महरूम हैं
शिक्षा का विकास होते हुए भी हम क्यों बार बार झूठ, फरेब के जाल में फंसे अंधे हो रहे है
देश हमारा है, कानून हमारा है, फिर भी क्यों हम इन झूठे वादों को तोड़ नहीं रहे हैं
आने वाली पीढ़ियों  को हम क्यूँ उसी भंवर में जला रहे हैं
क्यों नहीं हम उन्हें निश्छल वादों, इरादों का अस्तित्व दे पा रहे है