काश मुझे वो क्षण मिल पाता …....
नदियाँ के नीचे होता एक अम्बिया का पेड़
और उस पर लगे होते वो खट्टे खट्टे आम हरे
हर सवेरा होता उस सूरज की धूप
और आती जब नींद तो मिल जाती वो अम्बिया के पेड़ की रूह
करता कभी इकठ्ठे जब चार आने
तभी उड़ जाता दोस्तों के संग उन गलियों में वो बर्फ के गोले खाने
बारिश होती तो उसके पानी में खुद को रंग लेता
उछलता, कूदता हुआ अपनी जेब में उन सारे रंगों को मैं भर लेता
बीमार होता मैं जब, बुखार का भी मज़ा कुछ होता तब और
माँ की गोद के लालच मैं वो काढ़ा भी मीठा समझ मैं पी लेता
करता मैं बापू के कंधे पर बैठ वो हरे हरे खेतों की सैर
थक कर सुनता जब दादी की कहानी, रात की नींद हो जाती तब सुनहरे सपनों की रानी
सुबह हर सपने को सोचता सोचता अपना बस्ता ले पाठशाला मैं जाता
और अपने बस्ते मैं रखे माँ के खाने को कक्षा में ही मैं खा जाता
शायद कच्ची उमर का कच्चा जीवन होता तब वो
दुनिया की भीड़ से दूर एक सादा जीवन होता बस वो
कहाँ समझ पाया उस कच्ची उमर से बंधे उन पक्के धागों को
काश आज मेरे बचपन का एक क्षण भी मुझे मिल पाता...
नदियाँ के नीचे होता एक अम्बिया का पेड़
और उस पर लगे होते वो खट्टे खट्टे आम हरे
हर सवेरा होता उस सूरज की धूप
और आती जब नींद तो मिल जाती वो अम्बिया के पेड़ की रूह
करता कभी इकठ्ठे जब चार आने
तभी उड़ जाता दोस्तों के संग उन गलियों में वो बर्फ के गोले खाने
बारिश होती तो उसके पानी में खुद को रंग लेता
उछलता, कूदता हुआ अपनी जेब में उन सारे रंगों को मैं भर लेता
बीमार होता मैं जब, बुखार का भी मज़ा कुछ होता तब और
माँ की गोद के लालच मैं वो काढ़ा भी मीठा समझ मैं पी लेता
करता मैं बापू के कंधे पर बैठ वो हरे हरे खेतों की सैर
थक कर सुनता जब दादी की कहानी, रात की नींद हो जाती तब सुनहरे सपनों की रानी
सुबह हर सपने को सोचता सोचता अपना बस्ता ले पाठशाला मैं जाता
और अपने बस्ते मैं रखे माँ के खाने को कक्षा में ही मैं खा जाता
शायद कच्ची उमर का कच्चा जीवन होता तब वो
दुनिया की भीड़ से दूर एक सादा जीवन होता बस वो
कहाँ समझ पाया उस कच्ची उमर से बंधे उन पक्के धागों को
काश आज मेरे बचपन का एक क्षण भी मुझे मिल पाता...