जब गगन चूमता है धरती को
सावन का रंग चढा देता है तब वो
जब रात ओढती है चाँदनी का पर्दा
तारों को अपने आँचल में सजा लेती है तब वो
जब नदी लपेटती है सागर की चादर
खुद को सागर मैं संजो लेती है तब वो
जब नेत्र देखते है कोई सुन्दर द्रश्य
स्वयं को उस सुन्दर द्रश्य मैं रमा लेते हैं तब वो
जब कर्ण सुनते कोई प्रिय वचन
उन प्रिय शब्दों मैं विभोर हो जाते हैं तब वो
जब जिंदगी गाती है कोई सुर
तो सारे सुरों को अपने राग मैं ढाल लेती है तब वो
जब होता है जीवन का म्रत्यु से सामना
उसे नए जीवन की शुरुआत मान अपने अस्तित्व मैं मिला लेती है तब वो
सावन का रंग चढा देता है तब वो
जब रात ओढती है चाँदनी का पर्दा
तारों को अपने आँचल में सजा लेती है तब वो
जब नदी लपेटती है सागर की चादर
खुद को सागर मैं संजो लेती है तब वो
जब नेत्र देखते है कोई सुन्दर द्रश्य
स्वयं को उस सुन्दर द्रश्य मैं रमा लेते हैं तब वो
जब कर्ण सुनते कोई प्रिय वचन
उन प्रिय शब्दों मैं विभोर हो जाते हैं तब वो
जब जिंदगी गाती है कोई सुर
तो सारे सुरों को अपने राग मैं ढाल लेती है तब वो
जब होता है जीवन का म्रत्यु से सामना
उसे नए जीवन की शुरुआत मान अपने अस्तित्व मैं मिला लेती है तब वो
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